5. अज्ञेय और होमेन बरगोहाञि की कहानियों में चित्रित नारी ✍ गीतांजलि दास

शोध-सार :

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अप्रतिम साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (1911-1987) ने हिन्दी साहित्य के जिस भी विधा में लेखनी चलाई है, उसका हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपना अलग ही एक स्थान है । अज्ञेय की लेखनी से सब भली-भाँति परिचित हैं । अज्ञेय द्वारा रचित कथा-साहित्य की बात की जाए तो, अज्ञेय ने अपनी प्राय: कहानियों में मध्यवर्गीय लोगों के जीवन का, स्त्री-पुरुषों के बीच के संबंधों का, शरणार्थीयों के जीवन तथा क्रांतिकारियों के जीवन का चित्रण किया है । भारतवर्ष में प्राचीन काल से पूजनीय तथा सम्मानीय नारी से लेकर साहसी, पराक्रमी, बुद्धिमत्ता नारी सभी अज्ञेय की कहानियों में स्थान प्राप्त कर चुकी हैं । एक तरह से देखा जाए तो अज्ञेय ने अपनी ज्यादातर कहानियों में नारी के विविध रूपों का चित्रण किया है। प्रेमिका से लेकर क्रांतिकारी रूप धारण करने वाली प्रत्येक नारी उनकी कहानियों का उपजीव्य है । अज्ञेय ने लगभग सड़सठ (67) कहानियाँ लिखी हैं; जिनमें से तेईस (23) कहानियाँ श्रेष्ठ स्तर की मानी जा सकती हैं । जिस तरह हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध साधक अज्ञेय की रचनाओं की आलोचना किए बगैर हिन्दी साहित्य जगत की रचनाओं का मूल्यांकन अधूरा रह जाता हैं, उसी तरह असमीया साहित्य जगत में ‘रामधेनु युग’ के प्रमुख कथाकार होमेन बरगोहाञि (1932-2021) की रचनाएँ भी हमेशा ही आकर्षण की  केन्द्रबिन्दु रही हैं । उनकी रचनाएँ समाज तथा व्यक्ति जीवन के विविध उपकरणों से समृद्ध हैं । असमीया कथा-साहित्य में होमेन बरगोहाञि एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने कहानी के माध्यम से जीवन की वास्तविकता को नग्न रूप में पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है । जिन पहलुओं की ओर कभी किसी ने दृष्टि नहीं दी, पहली दफा होमेन बरगोहाञि ने उस पर नजर डालने के साथ-साथ समाज के एक गलित अंश की छवि को वास्तवरूप में अंकित किया है । इन्होंने कुल सैंतालीस (47) कहानियाँ लिखकर असमीया के कहानी साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान बनायी है । उनकी कहानियों में व्यक्ति के मन की निःसंगता, निराशा, हताशा, विषाद आदि आधुनिकतावाद के लक्षण दिखाई पड़ते हैं । विघटित होता मानवीय मूल्यबोध और द्वन्द्वात्मकता के साथ अस्तित्ववादी दर्शन तथा फ्रायडीय मनःस्तत्व का प्रभाव उनकी कहानियों में विद्यमान है । अज्ञेय की तरह बरगोहाञि भी अपनी प्रायः कहानियों में नारी के मन के सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप को उभारने में कुशल हैं । देखा जाए तो नारी का चित्रण इन दोनों की कहानियों  का एक अभिन्न अंग है । हिन्दी तथा असमीया साहित्य के दोनों साहित्यकारों के स्थान, परिवेश तथा समय अलग-अलग होते हुए भी दोनों की कहानियों में काफी समानताएँ दिखाई पड़ती है ।

बीज शब्द : कहानी, नारी, विविध रूप

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