4. नयी कहानी में वृद्ध वैचारिकी : एक अध्ययन (‘चीफ की दावत’ और ‘वापसी’ कहानी के विशेष सन्दर्भ में) ✍ डिम्पी बरगोहाई

शोध-सार :

           व्यक्ति अपने जीवन में क्रमश: शैशव, बाल्यकाल, युवावस्था और वृद्धावस्था से होकर गुजरता है। अर्थात बचपन के बाद जवानी, फिर बुढ़ापा यही जीवन चक्र है। व्यक्ति जब अपने पारम्परिक जीवन शैली से दूर अत्याधुनिक जीवन परिक्रमा की ओर अग्रसर होता है, तब नयी और पुरानी पीढ़ियों के बीच आदर्शगत टकराहट पैदा होती है। इसी के चलते तथाकथित आधुनिकताजन्य मानसिकता ने भारतीय समाज को संयुक्त परिवार से कोसों दूर एकल परिवार के निर्माण की ओर अग्रसर किया है। आज की युवा पीढ़ी एकल परिवार में रहना चाहती है, जिसमें पति-पत्नी और दो बच्चे रहते हैं। ‘हम दो हमारे दो’ की इस मन:स्थिति को लेकर परिवार परिकल्पना करने वाली नयी पीढ़ी आज परिवार के बड़े-बुजुर्गों की अवहेलना करती है, वह उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखती है । वह अपने ही वृद्ध माता-पिता की सेवा के लिए किंचित समय भी नहीं निकाल पाती । अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य के निर्माण में जिन माता-पिताओं ने स्वयं की आकांक्षाओं को उत्सर्गित कर अपनी संतानों के लिए दिन-रात मेहनत की हैं, वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचने पर अपनी ही संतानों से उपेक्षित होते हैं और एकाकीपन में, उदासीनता से जीवन व्यतीत  करते हैं ।  आज  वैश्वीकरण ने एक तरफ लोगों में यांत्रिकी और विज्ञान जैसे आधुनिक उपहार अवश्य दिये हैं, लेकिन मर्यादा, सकारात्मक संस्कार, संवेदनशीलता के मूल्य को समाप्त कर दिया है । इसी कारण आज अपने वृद्ध माँ-बाप के प्रति भी उनमें संवेदना नहीं है ।

बीजशब्द : वृद्ध वैचारिकी, प्रगतिशील, नई पीढ़ी, एकल परिवार, वैश्वीकरण, आधुनिकीकरण, संवेदनशीलता ।

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