3. शंकर शेष का ‘एक और द्रोणाचार्य’: एक समीक्षात्मक अध्ययन ✍ डॉ. संजीव मण्डल

शोधसार :

        ‘एक और द्रोणाचार्य’ हिंदी के एक बड़े नाटककार शंकर शेष की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रभावशाली नाट्यकृति है । इस नाटक का नायक एक सुविधावादी और ईमानदारी का ढोंग करने वाला नपुंसक व्यक्ति है। व्यवस्था से लड़ने का ढोंग वह पूरे नाटक में करता रहता है । अपने स्वार्थ के आगे उसे कुछ नहीं दिखता । रही-सही कसर व्यवस्था की क्रूरता पूरी कर देती है । अगर नायक व्यवस्था से ईमानदारी के साथ लड़ता हुआ ढह गया होता, तो हमें उसके प्रति सहानुभूति होती और हमारे मन में उसके प्रति सम्मान का भाव होता । पर वह तो स्वार्थी और मौकापरस्त व्यक्ति है, जो वादा करके मुकर जाता है । अपने बच्चों की उम्र के छात्रों के साथ छल करता है । उसका साथ देते हैं, उसकी पत्नी लीला और मित्र यदू । एक तरह से नायक अरविंद अपने गलत रास्ते पर चलने का सारा दोष इन दोनों पर मढ़कर अपने आप को पाक-साफ और सताया गया साबित करना चाहता है ।

बीज शब्द : स्वार्थी, मौकापरस्त, व्यवस्था, नकल, सत्यवादिता, दरिद्रता

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