2. प्रवासी कवयित्रियों की कविताओं में अभिव्यक्त भावों का विश्लेषण ✍ रमन कुमार

शोध सार :

भारत के कुछ लोग अपना जीवन यापन करने के लिए और अच्छी नौकरी की चाहत में विदेशों की ओर चल दिये थे, किंतु वहाँ पहुँचने पर न तो अच्छा काम मिल सका और न ही सम्मान । विदेशी जमीन पर पहुँचने पर इनके साथ तरह-तरह के अमानवीय व्यवहार किये गये । इन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया । इस तरह के कठोर संघर्षों के बीच उन्होंने वहाँ जो कुछ भोगा, उसे उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से बयां करने का प्रयास किया । इस प्रयास ने उन्हें लेखक की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया । अब कई दशकों से जो भारतीय विदेशों में रह रहे हैं । वे वहाँ रहते हुए अपने देश की सभ्यता, संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाजों को भूल न सके । यदा-कदा उन्हें यह सब कुछ याद आ ही जाता है । वे न तो भारत की मिट्टी को भूल सके और न ही भारतीय जनमानस के हृदय की स्वाभाविक चेतना को । यह सब कुछ हमें उनकी लेखनी में दिखाई भी देता है । प्रवासी साहित्य के अंतर्गत कहानी, उपन्यास, संस्मरण, समीक्षा, आलोचना इत्यादि विधाएँ लिखी गई हैं । कविता विधा भी उनमें से एक है । माना जाता है कि कविता अपनी बात को कहने का सरल, सूक्ष्म एवं सटीक माध्यम है । प्रवासी साहित्य कविता लेखन में कवियों एवं कवयित्रियों का समान अधिकार रहा है । किंतु इस शोध-आलेख में प्रवासी कवयित्रियों की कविताओं पर ही विचार किया गया है ।

बीज शब्द : सारगर्भिता, दृष्टिकोण, दिवंगत, डायस्पोरा, गिरमिटिया, लयबद्ध, मुक्तावस्था, ज्ञानदशा, मुक्तसाधना, उच्छलन, एग्रीमेंट, अत्यधिक, अग्रसर, अलंकार धर्मिता, बहुसंख्या

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