1. महिला उपन्यासकारों की रचनाओं में उत्तर औपनिवेशिक भारतीय नारी ✍ डॉ. अनूषा निल्मिणी सल्वतुर

शोध-सार :

            साहित्य मानव जीवन के गत्यात्मक सौन्दर्य की भावात्मक अभिव्यक्ति है। अतः यह निर्विवाद है कि साहित्य और मानव जीवन का परस्पर संबंध अत्यंत घनिष्ठ है। मानव जीवन की विविध आयामीय यात्राओं में अनेक प्रकार के जीवन मूल्यों का निर्माता भी मानव है। जहाँ साहित्य, समाज का दर्पण है, वहाँ वह मानव निर्मित जीवन-मूल्यों का संवाहक भी है। इसमें संदेह नहीं कि साहित्य का केन्द्रबिंदु मानव है और मानव जीवन के यथार्थ चित्रण को प्रस्तुत करने वाला औपन्यासिक साहित्य ही प्रस्तुत अध्ययन का विषय है। यह विशेषतः उत्तर औपनिवेशिक प्रमुख महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में चित्रित भारतीय नारी पर केन्द्रित है। प्रस्तुत अध्ययन के लिए स्वातंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यास साहित्य में नारी के अधिकारों के प्रति जागृति और नारी चेतना तथा संघर्षों को सजीव ढंग से चित्रित करनेवाली महिला उपन्यासकारों में से उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, मृणाल पांडे तथा मैत्रेयी पुष्पा को चुन लिया गया है और उनके बहुचर्चित  उपन्यासों में चित्रित नारी-पात्रों के जीवन ही अध्ययन के केंद्रीय विषय हैं।

बीज शब्द : उपन्यास, स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य, महिला उपन्यासकार, भारतीय नारी

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *