8. सुशीला टाकभौरे की कविताओं में स्त्री-मुक्ति का स्वर : एक विश्लेषणात्मक अनुशीलन ✍ नीतामणि बरदलै

सुशीला टाकभौरे हिंदी साहित्य की सफल कवयित्री हैं। एक दलित परिवार में जन्मी टाकभौरे ने जाति पर आधारित भारतीय समाज-व्यवस्था की कुरीतियों को देखा ही नहीं झेला भी है। कवयित्री ने पुरुष प्रधान समाज में नारी की दयनीय स्थिति का चित्रण करते हुए उसकीमुक्ति के स्वर से मुखरित कविताएँ लिखी हैं। उनकी कविता विद्रोह, संघर्ष एवं अधिकार का दस्तावेज है।

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