3. बनघोषा में अभिव्यक्त प्रणयानुभूति : एक अध्ययन *पूजा बरुवा

बिहुगीत असमीया लोकसाहित्य का प्रमुख अंग है। मुख्यतः रङाली बिहु के समय जो गीत गाये जाते हैं, वे ही बिहुगीत हैं। प्रेम संबंधी बिहुगीतों को बनघोषा कहा जाता है। इनके रचयिता कौन हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता; पर इनके रचयिता की काव्य-प्रतिभा में कोई संदेह नहीं है। गाँव के सहज-सरल, निरक्षर लोगों द्वारा गाये जाने-वाले ये गीत सुर, ताल, लय, बोधगम्यता, संप्रेषणीयता एवं प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अद्वितीय हैं। बिहुगीत कई प्रकार के होते हैं – हुचरि, योरानाम, बनघोषा (=वन में गाये जानेवाले गीत), जेङबिहु नाम आदि। बनघोषा  बिहुगीत का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। ये गीत सुनसान मैदानों में, नदी के घाटों में, जंगलों में, चैत महीने में मनाये जानेवाली राति बिहु (=रात के समय मनाया जानेवाला बिहु) में, वनों में, गाय-भैंस चराते वक्त चरवाहों ( मुख्यतः भैंस के चरवाहों) द्वारा उन्मुक्त होकर गाये जाते हैं।

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