नागार्जुन और अमरसेकर क्रमः हिंदी और सिंहली के मूर्धण्य उपन्यासकार हैं। ब्राह्मण होते हुए भी नागार्जुन ने पारंपरिक रीति-रिवाजों की उपेक्षा कर अपने चिंतन से

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हिन्दी का साहित्य अति समृद्ध है और इस साहित्य ने देश के साथ-साथ विदेशों के सैकड़ों घटनाओं-प्रसंगों को अपने विषय के रूप में ग्रहण किया

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भारत विभाजन पर आधारित ‘आधा गाँव’ राही मासूम रज़ा का बहुचर्चित उपन्यास है। इसमें भारत विभाजन के समय की मानवीय पीड़ा को गंगौली के निवासियों

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मध्यकालीन अखिल भारतीय भक्ति-आन्दोलन के कर्णधारों में महापुरुष श्रीमन्त शंकरदेव (ई॰ 1449-ई॰ 1568) अन्यतम हैं। एकशरण भागवती वैष्णव धर्म (एकशरण नाम धर्म) के प्रवर्तक-प्रचारक श्रीमन्त

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छायावाद आधुनिक हिन्दी कविता की उस धारा का नाम है, जो 1918 के आसपास द्विवेदी-युगीन निरस, उपदेशात्मक, इतिवृत्तात्मक और स्थूल आदर्शवादी काव्यधारा के बीच से

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मरूद्यान डॉ. भूपेंद्रनारायण भट्टाचार्य द्वारा रचित चेतना प्रवाह शैली में लिखा गया एक विचारोत्तेजक असमीया उपन्यास है । इसमें उपन्यासकार ने नायक शीलादित्य के माध्यम

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अर्थ आज के युग का मूल तत्व है, अर्थ को हम वर्तमान समाज की रीढ़ की हड्डी भी कह सकते हैं। आज समाज और मनुष्य

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सुशीला टाकभौरे हिंदी साहित्य की सफल कवयित्री हैं। एक दलित परिवार में जन्मी टाकभौरे ने जाति पर आधारित भारतीय समाज-व्यवस्था की कुरीतियों को देखा ही

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कश्मीर ही नहीं, देश- दुनिया की हर उस मानवीय त्रासदी को चंद्रकांता अपनी कहानियों में जगह देती है, जिसमें एक संवेदनशील रचनाकार का मन आहत

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