2. हिन्दी डायस्पोरा में अस्मिता और भाषा ✍ डॉ. दुर्गा प्रसाद सिंह

शोध-सार:

            यह आलेख भाषा संस्कृति और अस्मिता के दायरे में इसके भविष्य को समझने की कोशिश है । हिन्दी भाषा की अपनी एक संस्कृति है वह संस्कृति है इसकी भाव-प्रधानता । हिन्दी का नेरेटिव इसका गवाह है । जिन परम्पराओं से हिन्दी की संस्कृति बनी उसकी किस्सागोई पर गौर करने की जरूरत है । भारतीय परंपरा और दर्शन में दुःख और मृत्यु जैसी धारणाओं पर हजारों साल विमर्श चलता रहा है । इसके बावजूद हमारे क्लासिक हमेशा सुखांत थे । लोक कथा की परम्परा भारत और हिन्दी की संस्कृति की सबसे मुकम्मिल व्याख्या करती है । आज हमारे सिनेमा का नेरेटिव पूरी दुनिया को आकर्षित करता है । यही नहीं पश्चिम भारत की ओर एक उम्मीद और आशा से देखता है । वर्तमान समय में पारम्परिक ज्ञान और समझ के प्रति धारणाएँ  बदल रही हैं ।

बीज शब्द: हिन्दी डायस्पोरा, समाज, संस्कृति,भारत,लोक परंपरा 

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