9. धर्मवीर भारती-कृत ‘कनुप्रिया’ में मिथकीय योजना ✍ उदिप्त तालुकदार

शोध-सार:

            कालनिरपेक्ष पुरा-कथाएँ लगभग प्रत्येक समाज-जीवन की लोक परंपरा की अन्यतम नींव होती हैं। बदलते समय के साथ इन पुरा-कथाओं की प्रासंगिकता कभी कम नहीं होती । रामायण की कथा, महाभारत की कथा, राधा-कृष्ण के प्रेमाख्यान आदि भारतीय समाज-जीवन की पुरा-कथाएँ हैं । इन पुरा-कथाओं की कालातीत प्रासंगिकता को देखते हुए युग चेतस साहित्यकार इन पुरा-कथाओं को अपनी रचनाओं की पृष्ठभूमि के रूप में ग्रहण करते हैं । साहित्य में ऐसी पुरा-कथाएँ जब आधुनिक संदर्भों में नवीन अर्थों का संयोजन करती हैं, उन्हें ‘मिथक’ की संज्ञा प्राप्त होती है । हिंदी साहित्य जगत में मिथकीय योजना की एक लंबी परंपरा रही है । नयी कविता के दौर में यह प्रवृत्ति अधिक प्रभावी ढंग से उभरी । इस दौर में मिथकीय योजना के आधार पर कथा का संयोजन करनेवाले एक अन्यतम सशक्त हस्ताक्षर हैं धर्मवीर भारती । भारती द्वारा रचित ‘अंधायुग’, ‘कनुप्रिया’ मिथकीय योजना की दृष्टि से उल्लेखनीय रचनाएँ हैं । भारती ने ‘कनुप्रिया’ काव्य में राधा-कृष्ण के  प्रेमाख्यान को नवीन आयाम देकर युद्ध से जर्जर समाज एवं मानव-जीवन की अवस्थाओं को दर्शाने का प्रयास किया है ।

बीज शब्द: मानवीय मूल्य, राधा-कृष्ण, युद्ध, प्रेम

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