3. ‘बाजार में रामधन’: एक अंतर्पाठ ✍ प्रियंका कलिता

शोधसार :

            भारतीय समाज की संरचना में कृषक-जीवन और संस्कृति एक महत्वपूर्ण घटक है । किसान के बिना भारतीय समाज की मुकम्मल तस्वीर पेश नहीं की जा सकती । आज भी भारत की उनहत्तर फीसदी जनसंख्या गाँवों में निवास करती है । गांवों की अधिकांश जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है । नब्बे के दशक के पश्चात् जब उदारीकरण की नीतियाँ लागू हुईं, तब किसानों के जीवन का संघर्ष और भी बढ़ गया । खेती घाटे का सौदा होने के कारण किसान आत्महत्या करने लगे । उसके  साथ ही क्रमशः किसान  खेती को छोड़ने  भी लगे । इस लेख में कैलाश बनवासी की चर्चित कहानी ‘बाजार में रामधन’ के माध्यम से किसान-जीवन की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को समझने का प्रयास किया गया है । उसके साथ ही कहानी के पाठ को विस्तृत फ़लक पर देखने एवं किसान समस्या को समझने के लिए एक दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास भी किया गया है । कहानी के पाठ के अंतर्गत क्या-क्या संभावना विकसित हो सकती है, उसकी भी पड़ताल की गयी है ।

बीज शब्द :किसान, भूमंडलीकरण, बाजारवाद, कहानी, पाठक, बैल, रामधन, मुन्ना 

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