शोध-सार :
भारतीय सभ्यता-संस्कृति, साहित्य तथा धर्म ग्रंथों में राम एक ऐसे पात्र हैं, जो हमेशा से ही मानव जीवन के निकट रहे हैं , मनुष्य के लिए अनुकरणीय रहे हैं, जो अत्यंत ही प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण हैं । रामकथा का इतिहास बहुत पुराना है । महर्षि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ में राजा राम क्षत्रिय धर्म और औदात्यपूर्ण संस्कृति के वाहक हैं, तो तुलसीदासकृत ‘रामचरितमानस’ के राम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं । पर इस क्षेत्र में आधुनिक युगीन कवि निराला की कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ और नरेश मेहता का खंडकाव्य ‘संशय की एक रात’ के राम भिन्न हैं। इन दोनों काव्य में दोनों कवियों ने राम नाम को तो उद्धृत किया है, पर नवीन रूप मे; क्योंकि ये राम अवतारी राम नहीं, बल्कि अपने समय के साधारण मानव हैं, जो अपने समय की परिस्तिथियों से अवसाद ग्रस्त हैं । युगीन राजनैतिक, सामाजिक और मानसिक स्थितियों की अभिव्यक्ति के लिए निराला और नरेश मेहता ने पुराण एवं इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं मार्मिक प्रसंगों को आधार बनाकर ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘संशय की एक रात’ में आदर्श पुरुष, शील, शक्ति, सौंदर्य आदि गुणों से युक्त श्रीराम के मिथक में सामान्य जन की प्रश्नाकुलता, हताशा, उदासी, निराशा, युद्ध के प्रति संशयग्रस्त मन और युद्ध की विभीषिका से भयभीत, द्वन्द्वग्रस्त स्थिति तथा संवेदनशीलता को दिखाया है । अपनी इसी विशेषता के कारण आधुनिक युगीन ये दो काव्य एक ओर जहाँ सामान्य जन के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सफल हुए हैं, वही दूसरी ओर युगानुरूप परिस्थितियों में प्रासंगिक भी बन पड़े हैं ।
बीज शब्द : राम, मिथक, लघु मानव,प्रासंगिकता
