7. समीर ताँती की कविताओं में चित्रित आर्थिक चेतना ✍ रूबी मणि दास

अर्थ आज के युग का मूल तत्व है, अर्थ को हम वर्तमान समाज की रीढ़ की हड्डी भी कह सकते हैं। आज समाज और मनुष्य के विकास का मूल तत्व अर्थ ही है। अर्थ के अभाव में मनुष्य एवं समाज का विकास सम्भव नहीं। एक जागरूक साहित्यकार अपने समाज तथा आस-पास में घटित घटनाओं के प्रति हमेशा सचेत होता है। युगीन आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक ,धार्मिक विषमताएँ कवि या साहित्यकार के हृदय को आंदोलित न करें, ऐसा सम्भव नहीं। इस शोध-पत्र में समीर ताँती की कविताओं में चित्रित  आर्थिक चेतना को प्रस्तुत किया गया है। समीर ताँती जो असमीया साहित्य के समकालीन कवि हैं, इन्होंने अर्थ के अभाव में समाज में फैली अनेक प्रकार की विषमताओं, लाचारी, गरीबी आदि को भली-भाँति महसूस किया है, जिनका प्रतिफलन हम उनके द्वारा लिखित कविताओं में देख सकते हैं।

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