3. ‘आधा गाँव’ उपन्यास में चित्रित सांप्रदायिकता की समस्या ✍ डॉ॰ शरिफुज जामान

भारत विभाजन पर आधारित ‘आधा गाँव’ राही मासूम रज़ा का बहुचर्चित उपन्यास है। इसमें भारत विभाजन के समय की मानवीय पीड़ा को गंगौली के निवासियों के माध्यम से उजागर किया है। भारत की मिट्टी में सदियों से हिन्दुओं और मुसलमानों का जीवन पलता आ रहा था। पाकिस्तान बनने की मांग से पूर्व देश के हर एक गाँव में हिन्दू-मुसलमान दोनों संप्रदाय के लोग बड़े सौहार्दपूर्वक रहते थे। जैसे-जैसे देश की आजादी नजदीक पहुँचती गयी सांप्रदायिक वातावरण तीव्र होता गया। सांप्रदायिकता की भयानक आग ने देश के शहरों के साथ-साथ गाँवों को भी निगल लिया था। विवेच्य उपन्यास के रचनाकार का मानना है कि आजादी के ऐन वक्त और आजादी के बाद देश के सांप्रदायिक वातावरण को हिन्दू और मुसलमानों के कुछ महत्वकांक्षी नेताओ ने हवा दे रखी थी। दूसरी ओर, अंग्रेजों की ‘फूट डालो, राज करो’ नीति ने इस आग को भड़काने में सहयोग दिया था जो आम जनता की समझ से बाहर था। सन् 1947 में देश को आजादी तो मिली पर, बँटवारे की मार के साथ।  हिन्दू बहुसंख्यक इलाके को लेकर हिंदुस्तान और मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके को लेकर पाकिस्तान बना दिया गया। लोगों की आम धारणा थी कि विभाजन के बाद सांप्रदायिकता की जड़ें खत्म हो जाएंगी, लेकिन आजादी के सत्तर साल बाद भी यह खत्म होता हुआ नजर नहीं आता। प्रस्तुत शोधालेख में मूलतः व्याख्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्धतियों के माध्यम से इसी ज्वलंत पहलू पर प्रकाश डाला गया है।

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