2. रहस्यवादी चेतना के आलोक में महादेवी वर्मा की कविताएँ ✍ पूजा शर्मा

हिन्दी-भारती की अनन्य पुजारिन कवयित्री महादेवी वर्मा (ई॰ 1907—ई॰ 1987) छायावादी काव्यधारा के बृहच्चतुष्टयी में से अन्यतम हैं। अपनी अमर सर्जनाओं के माध्यम से उन्होंने छायावादी काव्य-विशिष्टताओं में विशेष रूप से रहस्यवाद को एक प्रधान आयाम के तौर पर जोड़ते हुए आधुनिक काव्यधारा को समृद्ध दिशा प्रदान की। उनकी काव्य-कृतियाँ — ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’ और ‘दीपशिखा’ न केवल उनकी काव्यानुभूति एवं काव्य-कला के क्रमशः ऊर्ध्वगामी स्वरूप को प्रकाशित करती हैं, बल्कि ये कृतियाँ कवयित्री की रहस्यवादी चेतना के स्वाभाविक एवं क्रमिक विकास के परिणाम भी हैं। 

रहस्यवाद मानव-मन की उस जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है जिसका क्षेत्र अध्यात्म-जगत और लक्ष्य आत्मा-परमात्मा की प्रणयानुभूति और ऐक्यानुभूति है एवं जिसकी अभिव्यक्ति प्रकृति-जगत के उपकरणों के माध्यम से सांकेतिक शब्दावली द्वारा की जाती है। यही रहस्यवादी चेतना महान कवयित्री महादेवी वर्मा की समूची काव्याभिव्यक्ति का केन्द्रीय तत्व है जिसके विविध वैचारिक रूपों में भारतीय परम्परा के दीर्घकालीन सूत्रों के साथ ही उनके मौलिक दृष्टिकोण के भी दर्शन होते हैं। वस्तुतः अपने निर्गुण-निराकार सर्वव्यापी प्रियतम की चिर विरहिणी कवयित्री महादेवी वर्मा की रहस्यानुभूति में न केवल उनकी एकनिष्ठ, निस्वार्थ एवं पूर्ण समर्पण की भावना निहित है, बल्कि उनकी प्रगाढ़ संवेदना, शुचितर करुणा एवं लोक-मंगलविधायिनी पीड़ा भी सन्निविष्ट हैं। प्रस्तुत शोधालेख में वर्णनात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्धतियों के माध्यम से विचाराधीन विषय पर समुचित अध्ययन किया गया है।

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