8. भूपेन हाजरिका एवं नागार्जुन के गीतों एवं कविताओं में अनुगुंजित समाज ✍ तैयबुन नेशा

साहित्यकार के हृदयस्थल एवं मनोभाव के परिणाम स्वरूप साहित्य का सृजन हुआ है। साहित्यकार समाज की तमाम गतिविधियों को बड़ी सतर्कतापूर्वक सुनता है, देखता है, समझता है और आनेवाली पीढ़ी को समझाने की प्रेरणा देता है। असमीया साहित्य एवं संस्कृति के धरोहर डॉ. भूपेन हाजरिका और हिंदी साहित्य के आधुनिकता बोध के प्रगतिशील विचारधारा के उज्ज्वल नक्षत्र बाबा नागार्जुन के मानव-कल्याण, मानव-प्रेम, सहानुभूति एवं मानवता का कलात्मक स्वर संपूर्ण जनमानस के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के दिव्य मंत्र से ओतप्रोत है।     डॉ. भूपेन हाजरिका अपने परिवर्तनकारी विचारों पर पूर्णत: आश्वस्त थे, क्योंकि उन्हें यकीन था कि हथियारों विहीन आवाजों, विचारों एवं शांति की यह लड़ाई अंत तक समाज में व्याप्त विविध विसंगतियों को मिटाकर मानवता की प्रतिष्ठा कर सकती है। इसलिए उन्होंने विचारों में बदलाव एवं मानवीय चेतना को जागृत करने हेतु जो उदात्त कंठ से मुक्ति-आकांक्षी जनता को न्योता देने का संकल्प लिया, वह परिवर्तन की दिशा में पहली सीढ़ी थी।

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